ज़िन्दगी की जैसे यूह ही कॉल ड्राप हो गयी। (बड़े भाई आलोक को समर्पित)

 


चला था घर से , मिलने जिंदी को।

मौत और मेरी यूह मुलाकात हो गयी।

ज़िन्दगी की जैसे यूह ही कॉल ड्राप हो गयी।

थीं बातें अभी बाकी बहुत सारी यूह ही अधूरी सी रहगयीं।

चला था घर से , मिलने जिंदी को। मौत और मेरी यूह मुलाकात हो गयी।
ज़िन्दगी की जैसे यूह ही कॉल ड्राप हो गयी।

कुछ ख्याल थे आते जाते से , चलते रास्ते पे हवाओं से टकराते मुस्कुराते से, वो भी यूह ही छूट से गये।

चला था घर से , मिलने जिंदी को। मौत और मेरी यूह मुलाकात हो गयी।
ज़िन्दगी की जैसे यूह ही कॉल ड्राप हो गयी।

जिंदी और मेरा बड़ा मस्त सा रिश्त था। वो मुझको परिस्तिथियां देती थी में उनको यादगार लम्हे बना देता था। लुका छुपी का खेल में जीत जाता था ,उन लम्हों को दोस्ती की तिजोरी में छुपा आता था।

चला था घर से , मिलने जिंदी को। मौत और मेरी यूह मुलाकात हो गयी।
ज़िन्दगी की जैसे यूह ही कॉल ड्राप हो गयी।

देखता था कभी-कभी ज़िन्दगी को शाम में, जाम में, इठलाती किसी शोख हसीना के नाम में। कभी होती वो कोरी, कभी लिपटी सुनहरी रोशनी की दमक में, पर रहते थे एक दूसरे की भनक में।

चला था घर से , मिलने जिंदी को। मौत और मेरी यूह मुलाकात हो गयी।
ज़िन्दगी की जैसे यूह ही कॉल ड्राप हो गयी।

एक दिन अकेले में बैठे, बात करते किसी ठनक में बोली! अब तो तेरे अक्स भी बड़े हुए दिखते हैं, तू उनको मेरे बारे में क्या बताएगा रिश्ता क्या है  हमारा उनको क्या समझाएगा।
मैं बोला,  मेरे अक्स मेरा इससे पुराना प्यार है।  और इसकी करी हुई नादानियां का मेरी जैसी मुस्कुराहट ही हथियार है।

चला था घर से , मिलने जिंदी को। मौत और मेरी यूह मुलाकात हो गयी।
ज़िन्दगी की जैसे यूह ही कॉल ड्राप हो गयी।

जब जिंदगी को पता लगा कि आ रहा था मैंने उससे मिलने और मौत से मेरी मुलाकात यूं ही हो गई।
वह रोई, चिल्लाई, छटपटाई बोली ज़रा रुक जाता हरजाई, उस से मिलने से पहले तुझे मेरी याद न आई? मुस्कुराया और बोला मिलने तो तुझसे आ रहा था वह तो यूं ही गले पड़ गई।

चला था घर से , मिलने जिंदी को। मौत और मेरी यूह मुलाकात हो गयी।
ज़िन्दगी की जैसे यूह ही कॉल ड्राप हो गयी।

अब मैं जिंदगी और मौत तीनों खड़े देख रहे थे, उन अपनों को जो रो रहे थे। मौत तटस्थ अड़ी खड़ी थी, ज़िन्दगी टूटी बिखरी बिलखि खंडित हुई पड़ी थी। में सोच रहा था अब क्या रह गया!

चला था घर से , मिलने जिंदी को। मौत और मेरी यूह मुलाकात हो गयी।
ज़िन्दगी की जैसे यूह ही कॉल ड्राप हो गयी।

आदत से मजबूर, उठ खड़ा हुआ मैं। जिंदगी को, समेटा, और बोला तुझसे मिलने आ रहा था मैं और  यह गले पड़ गई। तेरी नादानियां से लड़ने का हथियार,  मेरी मुस्कुराहट, इस पर भारी पड़ गई। बिना दर्द दिए मुझको अपने संग ले गई।

चला था घर से , मिलने जिंदी को। मौत और मेरी यूह मुलाकात हो गयी।
ज़िन्दगी की जैसे यूह ही कॉल ड्राप हो गयी।

Comments

  1. अति उत्तम .. दिल को छू जाने वाली कविता 🙏🏽

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  2. Really heart touching and so true.. gone so soon

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    1. Well expressed and heart touched.. the soul may rest in peace.

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  3. सर मन बहुत दुखी है कैसे लोग दूसरों के जीवन से खिलवाड़ कर लेते है, मै दिवंगत आत्मा को प्रमाण करता हूँ

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  4. Very nicely expressed ..........heavy loss no words to console 🙏

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